Saturday, July 16, 2016

उड़ान


कशवेले स्ट्रीट का नाम अब उहुरो स्ट्रीट हो गया था। मेरी दोनो बहनें स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद शादी करके अपने घरों की हो चुकी थीं। माँ अक्सर उन्हें याद कर उदास हो जाया करती थी। महरून ने शादी के कई इच्छामंदों में से आखिरकार हमारे स्कूल की क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज को चुन लिया था और अब वह उसके साथ इसी शहर में रहती थी, जबकि रज़िया दारुस्सलाम के उत्तरी तटीय शहर की एक खुशहाल गृहिणी थी । मेरे भाई फिरोज ने अपने अंतिम शैक्षणिक वर्ष में स्कूल को अलविदा कह दिया था। लोगों का कहना है कि उसका इतना पढ़ लेना ही कुछ कम आश्चर्य की बात नहीं थी । और अब वह 'ओरिएंटल इम्पोरियम में मुंशी था जहां से वह कभी कभी स्टेशनरी का सामान चुरा कर घर ले आया करता था।

माँ ने अपनी सारी उम्मीदें हम दोनों छोटे बेटों यानी मुझसे और आलू से लगा रखी थीं। वह नहीं चाहती थी कि हम दुकान के कामों में उलझ कर शिक्षा से ध्यान हटायएं । इसलिए उसने एक शाम अंतिम बार स्टोर  मजबूत लकड़ी के दरवाज़ों पर आधा दर्जन ताले लगाए और दुकान को बेच दिया। यह रज़िया की शादी के ठीक एक सप्ताह बाद की घटना है। रज़िया आंसू भरी आँखों के साथ विदा हो चुकी थी और अपने पीछे उहुरो स्ट्रीट के चक्कर खाते गुबार के बीच खड़ी व्यथित माँ को छोड़ गई थी।

फिर हम लोग उपांगा के आवासीय क्षेत्र में चले गए। उहुरो स्ट्रीट की हुमा हमी के मुक़ाबले यहां का माहौल बेहद शान्त था। सड़क पर बसों,  और कारों के शोर के बजाय हम अभी मेंढ़कों की टुर टराहट ाोरझीनगरोंकी आवाज सुना करते थे। रातें ड्रायोनिय, सुनसान ाोरोईरान हुआ करती थींजन की आदत डालने मेंहमेंएक समय लगा था। ाोपानगा रोड शाम सात बजते ही सुनसान हो जाया करता था ाोरबरुी गलयाँतारिकी में डूब जाती थीं, क्योंकि प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अधिकांश क्षेत्र अब तक गैर आबाद थे, और जहाँतक मकान बन चुके थे, उनके बाद पूरा इलाका घनी झाड़ियों, दीपीकर, हैबतनाक 'बाउबाब' के पेड़, आम और नारियल के झंडसे भरा पड़ा था।
कभी कभी शाम कोजब माँबहत उदास होती तो आलू और माँके साथ दो। तीन। पांच खेलते, जो ताश के तीन लोगों के बीच खेली जाने वाली एक प्रकार है। मेंाब विश्वविद्यालय में प्रवेश किया था और अक्सर शनिवार ही कोघर आया करता था। क लो स्कूल में अपने अंतिम वर्ष में था। वह पढ़ाई में बेहद तेज था ... हमारी उम्मीदों से कहीं अधिक।
इसी साल श्री दातो, हमारे स्कूल के एक पूर्व शिक्षक, जो इसी स्कूल के छात्र भी रह चुके थे, अमेरिका से कुछ दिनों के लिए लौटे। श्री दातो छात्रों में काफी लोकप्रिय थे। स्वदेश वापसी पर उन्हें एक ज़बरदस्त स्वागत किया गया। फिर कुछ दिन उन्होंने एक लोकप्रिय नेता की तरह पूरे शहर का दौरा किया। वे जहां जाते, उनके पीछे उनके प्रशंसक छात्रों का एक जनसमूह भी साथ होता। उन्हीं में से एक उल्लू भी था।
इस रोमांचक घटना ने आलू के दिल में भी उम्मीदों दीपक जलाया दिए थे कि उसे भी एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में न केवल दाखिला मिल सकता है बल्कि उसे जाने के लिए छात्रवृत्ति भी मिल सकती है। बाकी पूरे साल के दौरान उसने कई विश्वविद्यालय सीटों को पत्र लिखा जिसका नाम उसने USIS में मौजूद किताबों से हासिल किए थे। यू नीोरसीटयों के नामों का चयन वे अक्सर यूं ही बुला सोचे समझे या फिर नामों ध्वनि संगत आधारित था।
माँ उसे अपने प्रयासों को हंसी में उड़ा देती। वे अक्सर मुस्कुरा कर कहती''ोहाँ अमेरिका में तुम्हारे मामा बैठे हैं जो तुम्हें कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए हजारों गोलाबारी खेलेंगे? '' उसकी नज़र में यह सब तज़ीि समय के सिवा कुछ नहीं था और उल्लू बेचारा इससे कभी यह न कह पाता कि उसे जो सहायता माँ से मिल सकती है, वह किसी और से कभी नहीं मिल पाएगी।
कुछ सप्ताह ही दृढ़तापूर्वक इस पत्राचार के परिणाम दिखाई लगे जिनमें से अधिकांश होनहार थे। धीरे धीरे उल्लू को पता चलने लगा कि उनमें से बेहतर स्थान कौन सी हैं और इनमें से कौन सही मायने में महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध हैं। जल्द ही कुछ अलग विश्वविद्यालयों के सूचना पत्रक भी प्राप्त हुए जो काफी दिलकश थे। ऐसा लगता है कि वह पत्राचार जितना मेहनत कर रहा था, एक अमेरिकी विश्वविद्यालय दृढ़तापूर्वक प्रवेश के उतने ही चमकदार होते जा रहे थे, यहां तक ​​कि सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से भी उसे निराश नहीं होना पड़ रहा था। अब उसे अपने लेख के बारे में पता चल रहा था जिनके बारे में उसने पहले कभी सुना तक नहीं था: जीनियटकस, कासमो लोजी, आर्टी निशियल खुफिया जीन्स: एक बिल्कुल ही नए ब्रह्मांड वहाँ इस इंतजार कर रहा था ... शर्त बस इतनी थी कि वह एक बार किसी तरह वहां तक ​​पहुंच जाए, लेकिन उसे विश्वास नहीं था कि वह वहां तक ​​कभी पहुंच सकेगा। पता नहीं वह इसके लायक था भी या नहीं। इसका अस्तित्व उम्मीद ाोरनााम्मीदी के बीच झूलता रहता था।
दरअसल उल्लू स्थानीय विश्वविद्यालय में जगह पाने में सक्षम था। साल के अंत में जब अखबारों में चयनित उम्मीदवारों के नाम प्रकाशित हुए तो उसका भी नाम इसमें शामिल था, लेकिन शायद किसी बद कमाश अधिकारी ने जो शाीदरशूत भक्षक भी था, उसकी किस्मत का एसानिसलह किया, जो उसके लिए एक आघात से कम न था। उसने चिकित्सा में प्रवेश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसे एग्री कल्चर में जगह दी गई थी। देशभक्ति अपनी जगह है, लेकिन किसी गांवों में एग्री सांस्कृतिक अधिकारी के रूप में कार्य करना, उसके जीवन का उद्देश्य नहीं था। वह कभी शहर से बाहर नहीं निकला था। केवल एक बार स्कूल से जंगल की सैर करने गया था ... बस!
जब आलू कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टिकना लोजी से एक पत्र मिला जिसमें उसे प्रवेश और छात्रवृत्ति की पेशकश की गई थी तो वह बिल्कुल हक्का-बक्का रह गया। उसने पत्र को बार बार पढ़ा। इसमें जो कुछ दर्ज था, उस पर उसे विश्वास नहीं आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कहीं वह पढ़ने में कोई गलती न हो। उसने मुझसे कहा कि वह पत्र पढ़ कर उसे सनाईों। और जब उसे यकीन हो गया कि इसमें किसी गलती की संभावना नहीं है तो वह खुशी से जैसे पागल हो उठा।
'' नरक में गया एग्री कल्चर। '' उसने जहर खनद के साथ कहा।
लेकिन यह पहली बार माँ राम करना था।
माँ को इस बात परीकीन ही नहीं आती। '' जाओ ... जाओ! ... मेरा मन मत चाटो ... मुझे तंग मत करो। ''
'' लेकिन यह सच है। '' उल्लू ने विरोध किया, '' वे लोग मुझे स्कॉलरशिप दे रहे हैं। ''
हम लो जी मीज़पर थे ... हम तीनों ... और थर्मस से अभी चाय उंडेल गई थी। माँ मेरे सामने बैठी थी। उसने अपनी प्लेट पर एक निगाह डाली और फिर सिर उठा कर मेरी तरफ देखा।
'' क्या यह सच है? '' उसने मुझसे पूछा।
'' हां यह सच है। बस उसे अपने साथ केवल 400 डॉलर जेब खर्च के रूप में ले जाने हैं। ''
'' यह कितने गोलाबारी के बराबर हैं? '' उसने पूछा।
'' लगभग तीन हजार। ''
'' और हम लोग यह तीन हजार गोलाबारी कैसे पैदा होगा? ...... क्या तुम्हारी लॉटरी लगी है? ... और टिकट का क्या होगा? क्या वे हमें टिकट भी भेज रहे हैं? ''
उसने जैसे ही यह कहा उल्लू को अपने सारे परियोजना धूल में मिलते दिखाई देने लगे। वह ठीक ही तो कह रही थी। आलू को जितने रूपयों की जरूरत थी, वह हमारे लिए एक भारी- भरकम रकम थी।
'' क्या हम ऋण नहीं ले सकते? '' उसने पोचखा''में वहाँ काम भी करेंगे ... हाँ वहाँ वेटर का काम करना होगा ... एक वेटर का ... मैं जानता हूँ, तुम पैसों का प्रबंध कर सकती हो माँ ... पैसे वापस भेज देंगे। ''
'' अमेरिका में तुम्हारे मामा हो सकते हैं जो तुम्हारी मदद करेंगे। '' माँ ने उससे कहा, '' लेकिन ीहाँकोई मदद नहीं करेगा। ''
आलू के कंधे झुक गए और वहां बेटखाअपने कप लहर रहा। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी भी पल रो पड़ेगा। माँ बैठी अपनी तश्तरी में चाय उंडेल करपयती रही। उसके माथे शिकन भरी थी। मेरी पीठ की ओर स्थित खिड़की से शाम की रोशनी कमरे में प्रवेश कर रही थी, जो उसका चश्मा चमक रहा था। आखिरकार उसने अपनी प्लेट मेज पर रख दी। वह गुस्से में था।
'' और अंत हमसे इतनी दूर वहाँ जाना ही क्यों चाहते हो? क्या मैं तुम्हें एक ही दिन के लिए पाल पोस कर बढ़ क क्या था कि तुम मुझे छोड़ कर दूर देस चले जाओ? जहां आप जाना चाहते हो क्या ोहाँतमखें हमारी याद नहीं आएगी? क्या हम तुम्हारे लिए इतने महत्वहीन हो गए हैं? ागरतमखें कुछ हो गया तो ...। ''
उल्लू रो रहा था। इस कप में आंसू की एक बूंद गिरा, उसकी नाक भी बह रहा था। '' कितने ही बच्चे जाते हैं और वापस आ जाते हैं ... उन्हें कुछ भी नहीं होता ... अगर यही करना था तो मुझे पहले ही क्यों नहीं रोका? ... जब मुझे जाने नहीं देना चाहती थीं तो मुझे अनुरोध भेजने से क्यों नहीं रोका? ... अगर मेरी उम्मीदों को यूँ चकनाचूर ही करना था तो फरानखें परवान क्यों चढ़ाई दिया? '' वह बहुत तेज आवाज में बोले जा रहा था ... मैंने पहली बार उसे ऐसा करते देखा था। भावनाओं की तीव्रता से वह कांप रहा था।
फिर उस दिन के बाद उसने यह सवाल फिर कभी नहीं उठाया। उसने एग्री कल्चर कॉलेज में दाखिले के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया और कक्षाएं शुरू होने का इंतजार करने लगा। घर में वह सोफे पर पड़ा उपन्यास पढ़ता रहता ... दैनिक एक उपन्यास!
अगर शिक्षा मंत्रालय के इस अज्ञात अधिकारी ने उसके साथ अन्याय न की होती तो आलू को इतना दुख नहीं होता, और माँ कोमजबोर होकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत भी नहीं पड़ती।
कुछ दिनों बाद, रविवार की सुबह, माँ ने अपनी सिलाई मशीन से नज़रें ाठाएँाोर हम दोनों से मुखातिब हुई '' हम लोगों को चलकर यह पत्र श्री वेलेजी दिखाना चाहिए। वह इन मामलों के विशेषज्ञ हैं, हमें उनसे परामर्श करना चाहिए। ''
श्री वेलेजी हमारे स्कूल के पूर्व एड मनसटरेटर थे। उनका सिर काफी बड़ा, अंडे के रूप में, शरीर लड़की और गठा हुआ था। अपनी चौड़ी माथे और काले चश्मे के साथ वह एक पारंपरिक बौद्धिक की मज़हक तस्वीर नज़र आते थे। हम तीनों अपने सीट के कमरे में कुर्सियों पर बैठे एक दूसरे को देख रहे थे और इंतजार कर रहे थे। तभी वे आकड़े हुए, किसी खिलौने सिपाही की तरह चलते हुए, कमरे में प्रवेश किया और हमें स्वागत किया।
'' तुम कैसी हो बहन? '' उन्होंने कहा '' मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? ''
उनके बैठने तक आलू और साहित्य से खड़े रहे।
'' हम आपके पास सलाह के लिए आए हैं। '' माँ ने कहना शुरू किया।
'' ठीक है ... बोलो। '' उन्होंने इत्मीनान से बैठकर अपने हाथों कोसर पीछे बांधते हुए कहा।
माँ ने उन्हें अपने बारे में बताया कि वह किस परिवार में पैदा हुई, किस परिवार में उसकी शादी हुई, मेरे पिता के मरने के बाद वह कैसे अपने बच्चों की परवरिश की। उसने तो हमारी परिवारों के बीच संयुक्त रिश्ते भी देख लिए। '' अब यह ... '' माँ ने आलोक बताया। '' विश्वविद्यालय में पढ़ता है यह लड़का ... अमेरिका जाना चाहता है ... अपने कागजात उन्हें दिखाए। '' माँ उल्लू को आदेश दिया।
ऐसा लगा जैसे उल्लू ने बड़ी मुश्किलों से खुद को सोफे उठाया और धीरे धीरे आगे बढ़ कर कागजात श्री वेलेजी के हाथों में दे दिए। कागजात देखने से पहले श्री वेलेजी ने आलू से उसके अंतिम परीक्षा के रिजल्ट के बारे में पूछा।
आलू के जवाब से उनकी आंखें फैल गईं '' हैं? ... '' उन्होंने कहा '' सारे के सारे A ग्रेड? ''
'' हाँ '' क लो ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया।
श्री वेलेजी पहले पहल यूं ही बेदिली के साथ एक के बाद एक पत्र पलटे, लेकिन फिर वह ानखेंनाायत ध्यान से देखने पर मजबूर हो गए। उन्होंने लंबे वीजा फार्म को देखा जो एक मूल फार्म के नीचे कई कार्बन प्रतियां सलीके से पिन हुई थीं। उन्होंने विदेशी छात्र सलाहकार के अनुकूल तरीके से लिखा पत्र पढ़ा। स्नातक क्लब के सदस्यों के निमंत्रण पत्र पढ़कर उन्होंने खुशी जताई। आखिरकार उन्होंने मनकसराना शैली मेंसर उठाया।
'' यह लड़का ठीक कहता है। '' वे बोले, '' विश्वविद्यालय अच्छी है और वे उसे छात्रवृत्ति भी दे रहे हैं। मैं तुम्हें बधाई देता हूं। ''
'' लेकिन अब मुझे क्या करना चाहिए? '' माँ परेशानी के साथ पोचखा''आप क्या सलाह है? हमें बताइए कि हम क्या करें। ''
'' ठीक है। '' श्री वेलजी बोले '' यह शिक्षा के लिए बेहतर होगा। '' उन्होंने अपना हाथ उठाकर गला साफ किया और फिर धीरे से बोले '' लेकिन आप अगर यह जाने दोगी तो अपने बेटे को खो दो जाएगा। ''
'' वह बहुत दूर देस है ... अमेरिका। '' उन्होंने मानो बात खत्म करते हुए कहा '' अब बताओ तुम क्या लोगी? ... चाय? ... नारंगी का रस? ''
और आदेश लेने के लिए उनकी पत्नी किसी जिनकी तरह अचानक प्रकट हो गई।
'' सभी अमीर आदमी हर साल जाते हैं और वे नहीं खोते। '' घर लौटते हुए आलू कड़वे लहजे में बुदबुदाया। माँ चुप रही।
उस रात वह सिलाई मशीन पर थी और आलू सोफे पर लेटा पढ़ रहा था। रेडियो बास बज था और सामने के खुले दरवाजे से हवा सुखद झोंके आकर सिटिंग रूम के माहौल को ठंडा कर रहे थे। दरवाजे पर खड़ा था। बाहर केले के पेड़ हवा में लहरा रहे थे। सड़क पर एक कार तेजी से गुजरते हुए पड़ोस के घरों परपरछाईाँ डाल रही थी। एक जोड़ी जो शायद सैर को निकला था, धीरे धीरे बातें करते हुए ना चिकनी बाढ़ के पास से गुजर रहा था। लड़के लड़कियों के झुंड अपने अपने घरों को लौटने से पहले गपें मार रहे थे। थोड़े-थोड़े समय बादमाँ सिलाई मशीन में लगे हुए मोटर घर घराहट सुनाई दे रही थी। कमरे में वह हमसे दूर दूसरे कोने में बैठी थी जहां ांधईराकछ अधिक था।
थोड़ी देर बाद, वह हमारी ओर देखा और धीमे स्वर में बोली, '' जरा मुझे दिखाओ तो सही कि यह विश्वविद्यालय अंत है कैसी ... वह किताब लाओ ... लाओ करेंगे? ''
माँ ने विश्वविद्यालय के सूचना पुस्तिका कभी नहीं देखा था और हमेशा इसे नजरअंदाज कर दिया था। उसने इस स्थान के बारे में जानने की कभी हल्की सी भी इच्छा प्रकट नहीं की थी, जहां जाने के लिए आलू इतना बेकरार था।
अब हम तीनों पुस्तिकाएं चमकदार पृष्ठों पर झुके आधुनिक शास्त्रीय शैली की इमारतों, गुंबदों और इंसानों से कई गुना बलनहस्तोनों की तस्वीरें देख रहे थे। छात्रों व छात्राओं विभिन्न प्रकार के कार्यों में व्यस्त थे। व्यापक लानों घने सुइयों के नीचे वर्गों हो रहे थे। यह सब आश्चर्य ाँगीज़भे था और आकर्षक भी।
'' गजब की जगह है ... है ना? '' उल्लू ने धीरे से कहा। वह अपना जोश छिपा नहीं पा रहा था '' वहाँ सैकड़ों तरह के पाठ्यक्रम कराए जाते हैं ... वे अंतरिक्ष में रॉकेट भेज रहे हैं ... दूसरी दुनिया गांवों में ... चाँद पर। ''
'' मेरे बेटे! तुम चांद पर चला गया तो मेरा क्या होगा? '' माँ ने बड़ी सुरूचि से कहा। वह झिलमिलाता आँखों हमारे देख रही थी।
उल्लू वापस अपनी किताब लेकर बैठ गया और माँ फिर से सिलाई करने लगी।
थोड़ी देर बाद मैंने माँ को देखा। वह गहरी सोच में डूबी हुई थी, ाोरजीसा कि वे आमतौर पर ऐसे मौकों पर किया करते थे, वह काल्पनिक में अपनी ठोड़ी खुजा रही थी। शाीदमें पहली बारासे अपनी माँ के बजाय एक औरत के रूप में देख रहा था। मैं समझ सकता था कि इस समय उसके मन में क्या चल रहा है। वे हमारी परवरिश और परदाखत को कितनी कठिनाइयों से गुज़री थी। जब हमारे पिता का निधन हुआ, वह केवल 33 साल की थी, लेकिन वह शादी के लिए आने वाली कई याचिकाओं को ठुकरा दिया था, क्योंकि शादी के मामले में हमें अनाथालय भेजना पड़ता। पिता के निधन से पहले की तस्वीरों में माँ बेहद खूबसूरत और प्रसन्न दिखाई देती थी। वह स्वस्थ तो थी, लेकिन उसे मोटी बिल्कुल नहीं कहा जा सकता था। बाल फैशन शैली में छंटनी हुए होते थे। पैरों में ऊँची एड़ी के सैंडल और चेहरे पर मेकअप भी दिखता था। उनमें से एक तस्वीर है, जो किसी स्टूडियो में ली गई थी और उसे स्पर्श अप करके निखारा भी गया था, अब पिता की तस्वीर के बगल में लटकी हुई थी। इस तस्वीर में वह काले रंग की पृष्ठभूमि के सामने, बड़ी अदा से एक किताब हाथ में लिए खड़ी थी। नाईलोन के कपड़े हल्के हरे रंग से पेंट किया गया था जिसे का घेरा बड़े प्रतिष्ठित शैली में नीचे तक फैला था और किनारों पर सिक्के के आकार का, गहने टनके हुए थे। मैं इसे इस हालत में कभी नहीं देखा था। उसे तो मैं हमेशा खुरदरे चेहरे के साथ देखा था जो उम्र के साथ साथ अधिक असभ्य होता चला गया, क्योंकि झुर्रियों की लकीरें स्थायी होती चली गईं। बाल कम हो गए थे, शरीर मोटा हो गया था और आवाज भी भारी हो गई थी।
मुझे याद आया कि बचपन में आलू और मेंकीसे रात में उसके बड़े बिस्तर पर उसके साथ सोने के लिए अपनी अपनी बारयों का इंतजार करते थे, कैसे वह मुझे अपने गुदाज़ बाज़यों में समेट कर अपने सीने से लगा लेती थी। यहाँ तक कि मुझे सांस लेने में कठिनाई होने लगती थी और मैं सोचता था कि वह मुझे जल्दी छोड़ दे ताकि मैं सांस ले सकूँ।
उसने मुझे अपनी ओर देखते हुए देखा और बोली ... मुझसे नहीं, आलू से ... '' वादा करो ... वादा करो कि अगर मैं तुम्हें वहाँ जाने दूंगी तो तुम एक सफेद औरत से शादी नहीं करोगे। ''
'' ओह! माँ! ... तुम जानती हो कि मैं ऐसा नहीं कर हुई ताज़ा होगा। '' उल्लू कहा।
'' और वादा करो कि तुम सिगरेट और शराब नहीं पियोगे। ''
'' तुम्हें पता है ... मैं वादा करता हूँ। '' वह रोहानसा होकर बोला।
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आलू का पहला पत्र उसके जाने के एक सप्ताह बाद लंदन से आया। यहां वह अपने एक पुराने दोस्त से मिलने के लिए रुका था। इस पत्र में भावनाओं की बाढ़ बंद था।
'' में कैसे बयान करूं। '' उसने लिखा था '' विमान से दिखने वाला दृश्य ... मेलों ईमेल तक फैले सलीके से सजे खेत ... जैसे पृथ्वी सुंदर हरे वर्गों में विभाजित किया गया है, यहाँ तक कि पहाड़ भी स्वच्छ और सभ्य। लंदन, ओह लंदन ऐसा लगता है जैसे यह फिलहाल कोई अंतिम सिरा है ही नहीं ... घरों के अनगिनत ब्लॉक, चौराहे, पार्क, स्मारकों क्या कोई शहर और भी बड़ा हो सकता है ... एक बड़े शहर में हमारे शहर दारुस्सलाम जैसे कितने ही शहर समा जाएंगे ...। ''
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एक पक्षी अपने पंख फड़ फड़ा रहा था ... श्री वेलजी अपनी कुर्सी पर बैठे संपदा बोल्ड इशारा रहे थे ... ाोरमाँ की आंखेंदोर कहीं तक रही थीं।